बुधवार, 26 सितंबर 2012

शब्दों के मोती


सतारा के साहूकार देवराव अनगढ़ के यहां एक बालक राम नौकरी करता था। एक दिन साहूकार ने राम से अपने हाथों पर पानी डालने के लिए कहा। राम पानी डालने लगा तो उसकी नजर साहूकार के कानों पर चली गई और पानी इधर-उधर गिरने लगा। यह देखकर साहूकार चिल्लाकर बोले, 'किधर देख रहे हो? पानी मेरे हाथों पर क्यों नहीं डालते?' राम बोला, 'क्षमा कीजिएगा महाराज, आपके कान की बाली के तेजस्वी मोतियों में मेरी नजर अटक गई थ
ी।' साहूकार उसका मजाक उड़ाते हुए बोले, 'मूर्ख कहीं का, एक-एक मोती हजारों रुपये का है।

तुझ जैसे दरिद्र को सपने में भी ये नहीं मिल सकते। कभी तुम्हारे बाप-दादाओं ने...।' तभी बात काटकर राम बोला, 'देखिए महाराज, मेरे बाप-दादाओं पर मत जाइए। मैं आपकी नौकरी छोड़ता हूं, जिस दिन आपके जैसी बाली पहनने लायक हो जाऊंगा उसी दिन आपको अपना मुंह दिखाऊंगा।' यह कहकर वह वहां से निकल गया। चार महीने इधर-उधर भटकता हुआ राम काशी पहुंचा। वहां न उसके रहने का ठिकाना था और न ही भोजन का। पर उसे इसकी परवाह नहीं थी। उसे तो विद्वान बनना था, चाहे कितने ही कष्ट क्यों न आएं।

कुछ समय बाद एक दयालु आचार्य ने उसे अपनी कुटी में आश्रय दे दिया। वह वहां रहने लगा। बारह वर्षों तक वह अध्ययन करता रहा। अब वही बालक राम व्याकरण, तर्कशास्त्र, अर्थशास्त्र तथा न्याय शास्त्र में पारंगत हो चुका था। वह राम शास्त्री के रूप में प्रसिद्ध हो गया। राम शास्त्री की विद्वता से पूना के विद्वान बहुत प्रभावित हुए। उन्हें नाना साहब पेशवा ने उच्च पद प्रदान किया। शासकीय अधिकारी के रूप में वे जब सतारा पहुंचे तो बूढ़े देवराव अनगढ़ ने उनका स्वागत- सत्कार किया और उनसे क्षमा-याचना की। राम शास्त्री बोले, 'आप क्षमा न मांगें। आज मैं जो कुछ भी हूं आपकी बदौलत ही हूं। मैं तो आपका कृतज्ञ हूं।' साहूकार राम शास्त्री के प्रति नतमस्तक हो गए।
 

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