शनिवार, 17 दिसंबर 2011

माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?


धरती रा थाम्भा कद धसकै, उल्ट्यो आभो कद आसी ?
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

हात्यां रा होदा कद टूटे, घोड़ा न कद धमकास्यूं ।
मुछ्याँ म्हारी कद बट खावै, खांडा ने कद खड़कास्यूं ।
...
... सुना पड़ग्या भुज म्हारा ए, अरियाँ नै कद जरकासी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

म्हारे जितां धरती लेग्या, चाकर आज धणी बणग्या,
दोखीडाँ रै दुःख सूं म्हारै, अन्तै में छाला पड़ग्या ।
आंसू झरती आँखड़ल्यां में, राता डोरा कद आसी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

गाठी म्हारी जीभ सुमरता, कान हुआ बोला थारै,
दिन पलट्यो जद मायड़ पल्टी, बेटा नै कुण बुचकारै ।
माँ थारो तिरशूल चलै कद, राकसडा कद आरडासी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

थारै तो लाखां बेटा है, म्हारी मायड़ इक रहसी,
हूँ कपूत जायो हूँ थारै, थनै कुमाता कुण कहसी ।
अब तो थारी पत जावै है, बाघ चढ़यां तू कद आसी ।।
माता अब तो साँझ पड़ी है, रुस्यो दिन कद आसी ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें