रविवार, 21 अगस्त 2011

श्रीकृष्ण की ये 6 अद्भुत बातें अपनाएं, फिर सफलता चूमेंगी आपके कदम

मानव जीवन को सुर-दुर्लभ कहा गया है, यानी देवताओं को भी कठिनाई से हांसिल होने वाली स्थिति। जिस जीवन को पाने के लिय देवता भी तरसते हों, अगर उसे बगैर तैयारी के, बिना किसी योजना और गंभीर सोच-विचार के वैसे ही बिता दिया जाए तो यह हमारी समझदारी नहीं होगी।
दुनियादारी से जुड़े सारे काम, व्यापार-व्यवसाय और शादी-ब्याह तक को सफल बनाने या सही अंजाम तक पहुंचाने के लिये प्लानिंग की जरूरत पड़ती है, तो फिर जिंदगी को बगैर किसी प्लानिंग के कैसे बीतने दिया जा सकता है। मगर अधिकांश लोगों के साथ हो यही रहा है। जहां जीवन और उसके प्रबंधन की बात आए तो सबसे पहले पूर्णावतार श्री कृष्ण का नाम याद आता है।
श्रीकृष्ण पूर्ण कलाओं के अवतार हुए हैं। सौलहों कलाएं जिनकी विकसित हों, ऐसे अवतार थे श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण ने स्वयं तो सफल और सार्थक जीवन जीया ही साथ ही अपने करीबी दूसरे लोगों को भी जीवन को सार्थक बनाने, संवारने, निखारने में सहयोग किया। जीवन पूरी तरह से खिल व महक सके इसके सारे सूत्र श्रीकृष्ण ने दिये।
संतान की परवरिश कैसे हो इस प्लानिंग की कमी रह जाने के कारण धृतराष्ट्र-गांधारी के 100 कौरव पुत्रों का भविष्य अंधकार भरे दुखांत में बदल गया। वहीं दूसरी तरफ कृष्ण की बुआ देवी कुंती ने पांचों पाण्डु पुत्रों को प्रारंभ से ही ऐसे संस्कारों में ढाला कि बड़े होकर वे एक से बढ़कर एक सफलताओं और उपलब्धियों को प्राप्त करते चले गए।
देवी कुंती द्वारा दिये गए श्रेष्ठ संस्कारों के कारण पाण्डवों के जीवन की शुरुआत तो सुधर ही चुकी थी, लेकिन जब से पाण्डवों को श्रीकृष्ण का साथ और मार्गदर्शन मिला उनके जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल गए। श्री कृष्ण द्वारा बताएऔर समझाए गए जीवनप्रबंधन के सूत्रों के कारण ही जूए में हारे हुए दर-दर भटकने वाले निराश पाण्डव फिर से अपना खोया हुआ आत्मविश्वास और अधिकार प्राप्त कर पाते हैं।
महाभारत के युद्ध का सर्वश्रेष्ठ घोषित यौद्धा अर्जुन श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन मे ही इस योग्यता और मुकाम को हांसिल कर पाया था।
आइए जानते हैं उन सूत्रों को जो श्री कृष्ण ने बनाए और बताए हैं। इन सूत्रों को अपनाकर हम भी अर्जुन की तरह से अपने जीवन को सार्थक ही नहीं बल्कि कामयाबियों के सर्वोच्च शिखरों तक पहुंचा सकते हैं....
जीवन निखार के 6 अद्भुत सूत्र:
1. समर्पण- पहला और सबसे अहम् सूत्र जो जिंदगी को बनाता, संवावता और निखारता है, वह है अपने काम के प्रति पूरा का पूरा समर्पण। समर्पण ऐसा कि जिसमे फिर कोई भी शंका और संदेह की गुंजाइश न रह जाए।
2. अविचलन- काम के परिणाम या नतीजे को लेकर भी किसी प्रकार की बैचेनी या उतावलापन न हो। किसी भी प्रकार का विचलन समस्या ही पैदा करेगा, इससे आपकी एकाग्रता तो टूटेगी ही साथ में गति भी धीमी पड़ जाएगी।
3. संघर्ष- जिंदगी में कठिनाइयों, मुसीबतों, दु:खों या कड़वाहटों का होना सामान्य बात है। इस हकीकत को हर कोई जानता है। लेकिन बहुत गहराई में छुपी हुई सच्चाई यह है कि जीवन में दुखों के रूप में आने वाले संघर्ष ही जीवन का सौन्दर्य हैं। आप दुनिया के किसी भी सुन्दर और सफल जीवन को देख लें और उसमें से यदि संघर्षों और दुखों को निकाल दिया जाए तो उसका सौन्दर्य और सुगंध समाप्त हो जाएगा।
4. केन्द्र- श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के जीवन को संवारने और सफल बनाने में ही क्यों सहयोग किया। क्या इसलिये कि पाण्डव इनके रिश्तेदार थे? रिश्तेदार तो कंस भी कम नहीं था, लेकिन सगे मामा को खुद अपने ही हाथों मार डाला।
पाण्डवों का साथ देने के पीछे कारण रिश्तेदारी नहीं बल्कि कुछ ओर ही था। कृष्ण के मन में ओरों से अधिक जगह बना सके, क्योंकि पाण्डव धर्म, सत्य और नीति के मार्ग पर हर सुख-दु:ख में डटे रहे। उन्होने केन्द्र में श्रीकृष्ण और धर्म को अंत तक बनाए रखा, यही उनकी जीत का कारण बना।
5. भावुकता- भावनाएं जीवन में रहें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन संतुलन और सीमा सदैव बनी रहना चाहिये। भावनाओं में बहकर कर्तव्य से विमुख हो जाना या कमजोर पड़ जाना भावनाओं की नहीं बल्कि भावनाओं के असंतुलन की गड़बड़ का परिणाम है। यही हुआ था अर्जुन के साथ, जिन भावनाओं को हृदय की उदारता या महानता मानकर अर्जुन धर्म युद्ध से विमुख हो रहा था वह भावनाओं का असंतुलन ही था। गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण ने अर्जुन के जीवन में संतुलन लाया।
6. परिणाम की चिंता- अच्छाई, सच्चाई या भलाई का रास्ता आमतौर पर कठिन हुआ ही करता है। इसलिये ऐसे कामों में इंसान परिणाम को लेकर अक्सर आशंकित और चिंतित रहने लगता है। इस चिंता और बैचेनी का बुरा असर यह होता है कि व्यक्ति का ध्यान अपने कर्तव्य से भटकने लगता है। साथ ही इंसान की कार्यक्षमता और योग्यता भी प्रभावित होकर घटने लगती है। इसलिये कर्म करें, परिणाम की चिंता परमात्मा पर छोड़ दी जाए।

श्री कृष्ण शरणम ममः ॥ जय श्री कृष्णा ॥ भगवान श्री कृष्ण परमब्रह्म पुरुषोत्तम हैं, उनकी अनन्यभाव से भक्ति करने वाले जीवों का सर्व विधि कल्याण है। शुद्धाद्वैत सम्प्रदाय एवं पुष्टिमार्ग में शरण, समर्पण और सेवा का क्रम निश्चित किया गया है, जिनमें नवधा भक्ति का समावेश हो जाता है इसलिए हमारे आचार्य श्री के उपदेशानुसार प्रथम प्रभु की शरण में जाने का आदेश है। जीव प्रभु का अंश है, प्रभु से वियोग होने के कारण वह विविध दोष तथा दुःखों से युक्त हो रहा है। आचार्य श्री ने समस्त दोषों तथा दुःखों की निवृत्ति के लिये एवं निर्दोष बनने के लिये तथा आत्यन्तिक सुख प्राप्ति के लिये भगवान श्री कृष्ण की शरण में जाने की शिक्षा तथा दीक्षा दी है। इसी दीक्षा के अवसर पर आचार्य श्री ने शरण भावना प्रधान अष्टाक्षर महामन्त्र का उपदेश देकर सदैव शरण भावना रखने की शिक्षा दी है। जीव के दोष मात्र का कारण उसका अहंकार तथा अभिमान है। इस अहंकार का उदय न हो तथा दीनताभाव सदैव सुदृढ रहे इसके लिये “श्री कृष्ण शरणम ममः” अर्थात मेरे लिये श्री कृष्ण ही शरण हैं, रक्षक हैं, आश्रय हैं – वही मेरे लिये सर्वस्व हैं। मैं दास हूं, प्रभु मेरे स्वामी हैं और मैं आपकी शरण में हूँ। इस भावना से दीनता बनी रहती है, तथा अहंकार का उदय नही होता ।
धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः। लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः। दीन दुःखियों का, निर्बल जनों का सदा, दृढ सहारा है श्री कृष्ण शरणम ममः। वैष्णवों का हितैषी, सदन शांति का, प्राण प्यारा है श्री कृष्ण शरणम ममः। काटने के लिये मोह जंजाल को, तेज तलवार श्री कृष्ण शरणम ममः। नाम ही मंत्र है मंत्र ही नाम है, है महामंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः। छूट जाते है साधन सभी अंत में, साथ रहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। साथी दुनिया में कोई किसी का नही, सच्चा साथी है श्री कृष्ण शरणम ममः। तरना चाहो जो संसार सागर से तो, पार कर देगा श्री कृष्ण शरणम ममः। शत्रु हारेंगे होगी विजय आपकी , याद रखना है श्री कृष्ण शरणम ममः। सुख मिलेगा सफलता स्वयं आयेगी, तुम जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। पूरे होंगे मनोरथ सभी सर्वदा, जो न भूलोगे श्री कृष्ण शरणम ममः। दीनबंधु कृपासिंधु गोविन्द के, प्रेम का सिंधु श्री कृष्ण शरणम ममः। दुःख दारिद्र दुर्भाग्य को मेट कर, देता सौभाग्य श्री कृष्ण शरणम ममः। ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी प्रेम से, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। शेष सनकादि नारद विषारद सभी , रट लगाते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। मंत्र जितने भी दुनिया में विख्यात हैं, मूल सबका है श्री कृष्ण शरणम ममः। पानो चाहो जो सिद्धि अनायास है, वे जपें नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। भक्त दुनिया में जितने हुए आजतक, सबका आधार श्री कृष्ण शरणम ममः। लट्टुओं की तरह विश्व के जीव हैं, काम विद्युत का श्री कृष्ण शरणम ममः। दुष्ट राक्षस डराने लगे जिस समय, बोले प्रहलाद श्री कृष्ण शरणम ममः। राणा बोले कि रक्षक तेरा कौन है, मीरा बोली कि श्री कृष्ण शरणम ममः। बोलो श्रद्धा से, विश्वास से, प्रेम से, कृष्ण श्री कृष्ण श्री कृष्ण शरणम ममः। प्राणवल्लभ के वल्लभ हैं वल्लभ प्रभु, उनका वल्लभ है श्री कृष्ण शरणम ममः। दुख मिटाता है देकर सहारा सदा, सुख बढाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। धाम आनंद का, नाम गोविन्द का, सिंधु रस का है श्री कृष्ण शरणम ममः। जग में आनन्द अक्षय अचल संपदा, नित्य देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। पांडवों की विजय क्यों हुई युद्ध में, उसका कारण है श्री कृष्ण शरणम ममः। द्रौपदी का सहारा यही एक था, नित्य जपती थी श्री कृष्ण शरणम ममः। ब्रज के गोपों का गोपीजनों का सदा, एक आश्रय था श्री कृष्ण शरणम ममः। वल्लभाचार्य का विट्ठलाधीश का, मूल साधन था श्री कृष्ण शरणम ममः। पुष्टीमार्गीय वैष्णव जनों के लिये, प्राणजीवन है श्री कृष्ण शरणम ममः। लाभ लौकिक-अलौकिक विविध भांति के, सबसे बढकर है श्री कृष्ण शरणम ममः। क्षीण हो जाते हैं पुण्य सब भांति के, किंतु अक्षय है श्री कृष्ण शरणम ममः। काम सुधरेंगे सब लोक परलोक के, तुम जपोगे जो श्री कृष्ण शरणम ममः। बल है निर्बल का, निर्धन का धन है यही, गुन है निर्गुण का श्री कृष्ण शरणम ममः। यह असम्भव को संभव बनाता सदा, शक्तिशाली है श्री कृष्ण शरणम ममः। कोई अन्तर नही नाम में रूप में, है स्वयं कृष्ण श्री कृष्ण शरणम ममः। जिनको विश्वास नही वे भटकते रहें, हम तो जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। खिन्नता , हीनता और पराधीनता, सब मिटाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। भाग जाता है भय, होता निर्भय हृदय, याद आते ही श्री कृष्ण शरणम ममः। दूर रखता है दुःसंग से सर्वदा, देता सत्संग श्री कृष्ण शरणम ममः। रंग अद्भुत चढाता है सत्संग का, संग रहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। कृष्ण का प्यार, पीयूष की धार है, शास्त्र का सार श्री कृष्ण शरणम ममः। काम को, क्रोध को, मोह को, लोभ को , नष्ट करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। मेट दुख-द्वन्द, भव-फन्द छल-छंद सब, देता आनन्द श्री कृष्ण शरणम ममः। पाप का, ताप का, क्लेश का, द्वेष का, नाश करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। ज्ञान ध्यानादि से, योग यज्ञादि से , सबसे बढकर है श्री कृष्ण शरणम ममः। है अहोभाग्य उसके जिसे अन्त में, याद आता है श्री कृष्ण शरणम ममः। धन्य है भक्त वह जिसके मन में सदा, वास करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। कृष्ण बसते हृदय में उसी भक्त के, जो भी जपता है श्री कृष्ण शरणम ममः। छूट जाते हैं धन-जन-भवन एक दिन, साथ जाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। बस जरूरत है श्रद्धा की, विश्वास की, कल्पतरु ही हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। चलते फिरते जपो या जपो बैठकर, है सफल मंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः। चाहे अन्दर जपो, चाहे बाहर जपो,अंतर्यामी है श्री कृष्ण शरणम ममः। आज तक जो किये हैं सुकृत आपने, फल हे उनका श्री कृष्ण शरणम ममः। थक गये हैं जो जग में भटक कर उन्हे, देता विश्राम श्री कृष्ण शरणम ममः। जग में जितने भी साधन हैं छोटे बडे, सबका स्वामी है श्री कृष्ण शरणम ममः। जाना चाहो जो लीला में श्री कृष्ण की, तो जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। शुद्धि करनी हो जीवन की, मन की तुम्हे, तो जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। गेय श्रद्धेय है ये अनुपमेय है, है स्वयं श्रेय श्री कृष्ण शरणम ममः। मन की ममता अहंता अभी मेट कर, समता देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। कृष्ण होते प्रकट अपने जन के निकट, नित्य रटते जो श्री कृष्ण शरणम ममः। दुनिया झुकती है चरणों में उनके सदा, नित्य जपते जो श्री कृष्ण शरणम ममः। शुद्धि करता है अन्तःकरण की सदा, बुद्धि देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। भ्रांति हरता है सिद्धांत के ज्ञान से, क्रांतिकारी है श्री कृष्ण शरणम ममः। भक्ति का ज्ञान का और वैराग्य का, भाव भरता है श्री कृष्ण शरणम ममः। बन्द आँखों को सत्संग के ज्ञान से, खोल देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। दो सो बावन ओ चौरासी वैष्णव सभी, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। पुष्टिमार्गीय वैष्णव करोडों हैं जो, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। सेवा उत्तम है सब में सदा मानसी, श्रेष्ठ सुमिरन है श्री कृष्ण शरणम ममः। कोई झंझट नही कोई खटपट नही, सीधा सादा है श्री कृष्ण शरणम ममः। चस्का लग जाये रस का तो कहना ही क्या, अपने बस का है श्री कृष्ण शरणम ममः। कृष्ण के प्रेम का, नेम का, क्षेम का, केन्द्र सबका है श्री कृष्ण शरणम ममः। अपने गौरव तराजू में साधन सभी, तोल देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। ज्ञान का, ध्यान का, मान सम्मान का, दान देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। मानसी सिद्ध करता है सद्भाव की, वृष्टि करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। ब्रह्म साकार भी है निराकार भी, सिद्ध करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। मर्म समझाता है वेद के भेद का, खेद हरता है श्री कृष्ण शरणम ममः। सच्चे वैष्णव की ये मुख्य पहचान है, नित्य जपता है श्री कृष्ण शरणम ममः। वृद्धि करता है आयुष्य आरोग्य की, यह रसायन है श्री कृष्ण शरणम ममः। मेट देता है भ्रम और संशय सभी, सिद्ध सदगुरु है श्री कृष्ण शरणम ममः। बीज दुनिया में होता है हर चीज जा, भक्ति का बीज श्री कृष्ण शरणम ममः। चारों युग में और चौदह भुवन में सदा, सर्व व्यापक है श्री कृष्ण शरणम ममः। मन को निर्मल बना भगवदीय को , देता रस दान श्री कृष्ण शरणम ममः। सुहृदय के हिंडोले में श्री कृष्ण को, नित झुलाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। रास के जो रसिक हैं उन्हे पास में, नित बुलाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। आस विश्वास रखते हैं जो कृष्ण में , दास जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। अन्याश्रय से डरते हैं वैष्णव सदा, उनका आश्रय है श्री कृष्ण शरणम ममः। प्रेम बाजार में सदगुरु जो हरि, रत्न देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। तोला जाता नही मोल बिकता नही, रत्न अनमोल श्री कृष्ण शरणम ममः। भाग्यशाली भगवदीय जन ही सदा, प्राप्त करते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। जो कृपा पात्र हैं बस उन्ही के लिये, है ये वरदान श्री कृष्ण शरणम ममः। है बडे भाग्य उनके जिसे मिल गया, देव दुर्लभ है श्री कृष्ण शरणम ममः। मिल गया है जिन्हे वे सुने ध्यान से, वे धरोहर हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। है ये गोलोक का मार्गदर्शक सखा, नित्य रटना है श्री कृष्ण शरणम ममः। जेबकतरों, अविश्वासियों से सदा, गुप्त रखना है श्री कृष्ण शरणम ममः। छोड देते हैं अपने सभी लोग तब, साथ देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। टूट जते हैं ममता के धागे सभी, साथ देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। पर्दा हटाता है दिल में अज्ञान का, कृष्ण बनता है श्री कृष्ण शरणम ममः। देखता है न अपराध जन का कभी, है क्षमाशील श्री कृष्ण शरणम ममः। रंग की , धोप के, धन की, परवाह नही, प्रेम चाहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। दूर हरि से न हरिजन रहे एक भी, चाहता है यह श्री कृष्ण शरणम ममः। माता करती हिफाजत उसी तौर से , रक्षा करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। आप उनके बनें वे बने आपके, यही कहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। भक्त सोता है तब भी स्वयं जाग कर, पहरा देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। चाहे मानो न मानो खुशी आपकी, सच्चा धन तो है, श्री कृष्ण शरणम ममः। डर नही है किसी द्वेत का, प्रेत का , शुद्धद्वैत श्री कृष्ण शरणम ममः। यह सीधी सडक चल पडो बेधडक, साथ रक्षक है श्री कृष्ण शरणम ममः। हारते हे नही वे कहीं भी कभी, नित्य जपते जो श्री कृष्ण शरणम ममः। श्याम सुंदर निकुंजों में मिल जायेगें, ढूंढ लायेगा श्री कृष्ण शरणम ममः। दुनिया सपना है अपना न कोई यहाँ , नित्य जपना है श्री कृष्ण शरणम ममः। सत्य शिव और सुन्दर है सर्वस्व जो, वो है नवनीत श्री कृष्ण शरणम ममः। धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः। लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः। *************************************************************
भगवान श्रीकृष्ण का लीलामय जीवन अनके प्रेरणाओं व मार्गदर्शन से भरा हुआ है। उन्हें पूर्ण पुरुष लीला अवतार कहा गया है। उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन श्री व्यास ने श्रीमद्भागवत पुराण में विस्तार से किया है। भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र मानव को धर्म, प्रेम, करुणा, ज्ञान, त्याग, साहस व कर्तव्य के प्रति प्रेरित करता है। उनकी भक्ति मानव को जीवन की पूर्णता की ओर ले जाती है। भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देश व विदेश में कृष्ण जन्म को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म बुधवार को मध्यरात्रि में हुआ। उनके जन्म के समय वृषभ लग्न था व चंद्रमा वृषभ राशि में था। रोहिणी नक्षत्र में जन्मे कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन विविध लीलाओं से युक्त है। कृष्ण भारतीय जीवन का आदर्श हैं और उनकी भक्ति मानव को उसके जीवन की पूर्णता की ओर ले जाती है। भगवान विष्णु के कुल 24 अवतारों के क्रम में कृष्ण अवतार का क्रम 22वां है। धरती पर धर्म की स्थापना के लिए ही द्वापर में भगवान विष्णु कृष्ण के रूप में मथुरा के राजा कंस के कारागार में माता देवकी के गर्भ से अवतरित हुए। उनका बाल्य जीवन गोकुल व वृंदावन में बीता। ND गोकुल की गलियों में व मां यशोदा की गोद में पले-बढ़े कृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में ही अपने परम ब्रह्म होने की अनुभूति से यशोदा व बृजवासियों को परिचित करा दिया था। उन्होंने पूतना, बकासुर, अघासुर, धेनुक और मयपुत्र व्योमासुर का वध कर बृज को भय मुक्त किया तो दूसरी ओर इंद्र के अभिमान को तोड़ गोवर्धन पर्वत की पूजा को स्थापित किया। बाल्य अवस्था में कृष्ण ने न केवल दैत्यों का संहार किया बल्कि गौ-पालन उनकी रक्षा व उनके संवर्धन के लिए समाज को प्रेरित भी किया। उनके जीवन का उत्तरार्ध महाभारत के युद्ध व गीता के अमृत संदेश से भरा रहा। धर्म, सत्य व न्याय के पक्ष को स्थापित करने के लिए ही कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया। महाभारत के युद्ध में विचलित अपने सखा अर्जुन को श्रीकृष्ण ने वैराग्य से विरक्ति दिलाने के लिए ही गीता का संदेश दिया। गीता का यह संदेश आज भी पूरे विश्व में अद्वितीय ग्रंथ के रूप में मान्य है। भगवान कृष्ण ने जहां अभिमानियों के घमंड़ को तोड़ा, वहीं अपने प्रति स्नेह व भक्ति करने वालों को सहारा दिया। राज्य शक्ति के मद में चूर कौरवों के 56 भोग का त्याग कर भगवान कृष्ण ने विदुर की पत्नी के हाथ से साग व केले का भोग ग्रहण कर विदुराणी का मान बढ़ाया। द्वारका का राजा होने के बाद भी उन्होंने अपने बाल सखा दीन-हीन ब्राह्मण सुदामा के तीन मुट्ठी चावल को प्रेम से ग्रहण कर उनकी दरिद्रता दूर कर मित्र धर्म का पालन किया

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